माठा - अजोध्या पहाड़ ट्रैकिंग
गर्मी के इस चिलचिलाती धुप में ३९ ढीठ लोगो का जत्था ट्रैकिंग के लिए निकल पड़ा ! ढीठ ? जी हाँ ढीठ क्योंकि ऐसे मौसम में सिर्फ इस मिज़ाज के ही लोग अपने पीठ पर बीस किलो का बोझ लाद ४२ डिग्री के तापमान में सारा दिन चल सकते है या फिर पागल किस्म के लोग !!
३९ लोगो का जत्था दो भागो में माथा के लिए रवाना हुआ एक २२ मार्च को जिसमे १५ लोग थे बाकी २३ मार्च को जिसमे २४ लोग थे।
हावड़ा चक्रधरपुर फ़ास्ट पैसेंजर से हम स्टेशन सुबह करीब ८ बजे पहुंच गए।
बराभूम स्टेशन से हम दो गाड़ी में सवार हो माथा पहाड़ चल दिए। पहला जत्था हमारे लिए नास्ता बना कर हमारा इंतज़ार कर रहा था
अपना नास्ता ख़त्म कर हम जल्दी जल्दी तैयार हो कर दो भाग में बंट गए एक जिसे माथा पहाड़ के ऊपर जाना था और दूसरा जिसे रॉक क्लाइम्बिंग और बॉल्डेरिंग का अभ्यास करना था।
शाम तक अभ्यास करने के बाद हम अपने कैंप एरिया में लौट आये और रात के खाने की तैयारी में जुट गए। रात का खाना खाने के बाद हमने दूसरे दिन के पैक फ़ूड को तैयार किया जिसे लेकर हमे ट्रैकिंग करना था।
सुबह से ही जंगल में आग लग गया था जो रात में दूर से ही लाल रंगत में दिखाई दे रहा था। जो दिखने में तो खूबसूरत था लेकिन उतना ही भयावह !
दूसरे दिन हम अपने अगले गंतव्य "कूदना" गाँव के लिए चल पड़े। जंगल में चारो तरफ आग ही आग लगी हुयी थी और जहां आग नहीं था वहा जले हुए राख थे। तापमान भी अपने पुरे शबाब पर था !
दोपहर तक हम अपने गंतव्य "कूदना" गाँव पहुंच गए और एक स्थानीय स्कूल में हमने अपने ठहरने का प्रबंध किया।
दूसरे दिन हम अपने अंतिम पड़ाव अजोध्या के लिए रवाना हो लिए। आज तापमान कल से भी ज्यादा था और चढ़ाई भी !! हम आराम करते हुए और सुस्ताते हुए बढ़ रहे थे। अक्सर हम कहते है हमे नए नए जगह घूमना चाहिए और ज़िन्दगी के नए रूप की तलाश करनी हो तो आप देशाटन करो , लेकिन इस धुप में जब आप के पीठ पर २० किलो का बोझ हो और सूरज भैया गुस्से में लाल हो तो ज़िंदगी नहीं मौत दिखाई देती है मुझे इसी माहौल में एक हिंदी गाना याद आ रहा था " ज़िन्दगी की तलाश में हम मौत के कितने पास आ गए हम.."
दोपहर तक हम अजोध्या पहाड़ पहुंच गए। अजोध्या पहाड़ पर एक बहुत ही पुराना आश्रम है हम जब वहा पहुंचे तब वह यग्न हो रहा था और महाभोग की तैयारी चल रही थी। उस आश्रम के संचालक ने हमे प्रसाद और दोपहर का खाना खाने के लिए आमंत्रित किया जिसे हमने सहर्ष स्वीकार कर लिया ! इससे हमे दो लाभ हुए पहला हमे दोपहर के खाना बनाने से मुक्ति मिल गयी और प्रसाद भी मिल गया जिसे हमने ईश्वर का वरदान समझ ग्रहण कर लिया।
प्रसाद ग्रहण करने के बाद हमने दो गाडी भाड़े में लिया और सवार हो पुरुलिया स्टेशन के लिए चल दिए जहाँ से हमारी ट्रैन रात ८ बजे थी। स्टेशन पहुँच हमने रात का खाना खरीद कर रख लिया जिसे हमने ट्रैन मैं बैठ कर खाया और उसके बाद थके होने के कारण हमे जल्द ही नींद आ गयी और जब आँख खुली तो तो ट्रैन हावड़ा पहुँच चुकी थी !!