Monday, February 22, 2016

छोटी शीतला माँ. . . .!


मेरे एक मित्र है उनका भी नाम राजेश है ..! पिछले हफ्ते उन्होंने मुझे फ़ोन कर शीतला माता के स्नान उत्सव में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया मैंने भी सहर्ष उनका आमंत्रण स्वीकार कर लिया।  उन्होंने बताया माघ महीने के पूर्णिमा के रोज माँ शीतला का स्नान उत्सव होता है।  उस रोज मेरे मित्र कुछ और लोगो के साथ मिलकर उत्सव में आने वाले श्रधालुओ के लिए खाने पीने का प्रबंध करते है ताकि भक्तो को किसी भी प्रकार की तकलीफ न हो। खैर मैं नियत समय पर उअनके निवास स्थान पहुँच गया।


 इस बार पूर्णिमा रविवार के रोज़ होने के कारण भक्तो की काफी भीड़ थी। लोग दोपहर से ही माँ के दर्शन हेतु दूर दूर से नए परिधान पहन कर आ रहे थे। मेरे मित्र ने आने वाले श्रधालुओ के लिए शरबत और चाय का व्वयवस्था कर रखे थे। करीब पचास लोग भीड़ में आ रहे लोगो को चाय और शरबत बाँट रहे थे !

 हावड़ा के सलकिया में स्थित छोटी शीतला माँ का मंदिर बहुत ही जाग्रत है।  कहते है सच्चे मन से आप माता से जो भी मांगेगे वह मनोकामना पूरी होगी !




इस माघी पूर्णिमा स्नान के पीछे कई कथाये प्रचलित है। छोटी माता को स्नान के लिए  नहीं निकाला जाता है बल्कि आस पास से बाकी माताओ की झांकी पालकी में सज कर निकलती है और छोटी माता के पास स्नान कर आती है। कहते है माता की कुल सात बहने है, वह सभी इनसे मिलने  माघ पूर्णिमा के दिन आती है। छोटी माँ स्नान करने नहीं निकलती है क्योंकि वह जब भी निकलती थी खो जाती थी। इसलिए वह स्नान करने नहीं निकलती है। दूसरी कथा के अनुसार एकबार छोटी माता अपनी बहनो के साथ स्नान करने जा रही थी तब किसी ने उन्हें देख लिया था। इसलिए छोटी माता ने सपने में अपने भक्तो को दर्शन देकर कहा उन्हें स्नान के लिए न निकला जाये। करीब सौ साल पहले माता को स्नान के लिए निकला गया था तब तब मंदिर की परिचारिका निरुपमा बनर्जी की छोटी बहन की बहुत कम उम्र में ही अकाल मृत्यु हो गयी थी। अगले वर्ष स्नान के बाद शीतला बाड़ी के किरायेदार की अकाल मृत्यु हो गयी! उसके बाद वाले साल माता के स्नान के लिए उनके सिहांसन को उठाने की कोशिश की गयी परन्तु सिहांसन टस  से मस नहीं हुयी तब से छोटी माता को स्नान के लिए नहीं निकला जाता है। 





स्नान वाले  दिन छोटी माँ का कलश लेकर गंगा जल से भर कर उसे मंदिर में स्थापित किया जाता है।  पुराने कलश को सात दिन रखने के पश्च्यात गंगा में विसर्जित कर दिया जाता है।  स्नान यात्रा के दिन माँ को गोमूत्र से शुद्धिकरण किया जाता है सिर्फ इसी  दिन ही माँ लो छूने की छूट रहती है।  स्नान वाले दिन भक्त जन गंगा में स्नान कर शाष्टांग दंडवत कर मंदिर में आते है और माँ का दर्शन कर पूजा करते है।




दोपहर होते होते भक्तो की भीड़ उमड़ने लगती है। पहले सिर्फ सात माताये ही आती थी लेकिन अब इनकी संख्या ६० के भी उपर हो चुकी है। सब माँ के आने के बाद बड़ी माँ आती है और स्नान उत्सव ख़त्म होता है।   







दिनांक २१ फरवरी २०१६ 

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