Monday, October 19, 2015


नेओरा  वैली ट्रेक ....



करीब बीस वर्षो के बाद मुझे तक़दीर ने फिर से हाई अलटीटुड  ट्रैकिंग में जाने का मौका दिया और मैं इसे छोड़ना नहीं चाहता था! इन बीस सालो में मैं अपने व्यावसायिक और निजी कारणों से एक भी ट्रेक कार्यक्रम में जा नहीं सका था सो जब इंस्टीटूट ऑफ़ एक्सप्लोरेशन ने समर ट्रेक के लिए नेओरा वैली का चुनाव किया तो मैं अपने आप को रोक नहीं  सका और  निश्चय किया …… हाँ मैं जाऊंगा!!
इस ट्रैकिंग में कुल चौदह लोग थे (मुझे लेकर) और मुझे इन तरह ऊर्जा से भरे लोगो का नेत्तृव दिया गया! 

दिनाक २७ मई २०१५ 

हम सभी सियालदह स्टेशन करीब आठ बजे पहुँच गए ट्रैन भी नियत समय पर थी लेकिन हमे अपने एक सदस्य कैम्पबेल की चिंता सता रही थी जो अब तक नहीं आया था।  खैर हमारे क्लब के सभापति श्री दुर्गादास साहा ने हम लोगो को कैप प्रदान कर हमारे कार्यक्रम की सफलता के लिए शुभकामनाये दी।  श्री अभिजीत बासु , बन्दना, एजाज़ नमिता और शुभ्र भी हमे विदा करने आये थे। ट्रैन अपने नियत समय पर अपने मंजिल की तरफ बढ़ चली और कैम्पबेल भी "दिल वाले दुल्हनिया ले जायेंगे" के राज के तरह दौड़ते हुए आखिरकार ट्रैन में चढ़ ही गया! 

ट्रैन करीब दस बजे बर्धमान पहुंची हमने रात का खाना खाया और खाकर सोने की तैयारी करने लगे। 

दिनाक २८ मई २०१५
हम न्यू मॉल जंक्शन करीब देश बजे पहुंचे हमारी ट्रैन एक घंटा विलम्ब से चल रही थी। 

हमने पहले से ही २ सूमो गाड़िया बुक कर रखे थे सो बिना अपना समय गवाए हम सूमो पर सवार हुए और लावा की तरफ बढ़ चले।  रास्ते में हम थोड़ी देर के लिए चाय पीने और कुछ सब्जिया खरीदने के लिए रुके। 

दो घंटे की यात्रा खूबसूरत वादियों से होते हुए लावा में जाकर ख़त्म हुयी। करीब १ बजे हम लावा पहुंचे।  



लावा दार्जिलिंग ज़िले के कालिम्पोंग से ३४ किलोमीटर दूर वसा एक छोटा सा खूबसूरत गाँव है जिसकी उचाई समुन्द्र तल से ७०१६ फ़ीट है. यह पश्चिम बंगाल के उन कुछ चुनिँदो जगहों में है जहां शीत काल में बर्फ गिरते है। यह नेओरा वैली का कालिम्पोंग से प्रवेश द्धार है। 

हमारे गाइड "गुड्डू" लावा टैक्सी स्टैंड में हमारा इन्तजार कर रहे थे।  हमने अपना सामान उतार कर एक दूसरे गाडी में रखा और अपने दोपहर का खाना खाने के बाद बिना समय गवाए हम अपने ट्रैकिंग के स्टार्टिंग पॉइंट "जीरो पॉइंट" की ओर चल पड़े। 


"जीरो पॉइंट" हम साढ़े तीन बजे पहुंचे। 
मौसम काफी खुशगवार था वन विभाग से जरुरी इजाजत लेने के बाद हम अपने आज के गंतव्य पी०एच० इ०  कैंप की ओर बढ़ चले..

करीब एक घटे चलने के बाद हम साढ़े चार बजे पी०एच० इ० कैंप पहुँच गए।  

यह काफी खूबसूरत जगह थी यहां वन विभाग ने दो लकड़ी के कॉटेज बना रखे है।  आज की रात हम इन्ही कॉटेज में बिताएंगे। 



सूर्य मखाल (टीम क्वार्टर मास्टर ) ने शाम के नास्ते और रात के खाने की तैयारी शुरू कर दिया। 
नेओरा वैली में जोक की भरमार है यहां का वातावरण इनके लिए काफी उपयुक्त है।  हम इनसे बचने के लिए हर सावधानिया बरत रहे थे फिर भी वे किसी न किसी तरह हमारे सुस्वादु रक्त का पान करने में सफल हो रहे थे!
रात के भोजन के बाद हम जल्द ही सोने चले गए. हम काफी थके हुए थे सो जल्द ही सभी गहरी नींद में चले गए

दिनाक २९ मई २०१५ 
हम सुबह जल्दी ही उठ गए रह रह कर हलकी वारिश हो रही थी। . हमारे गाइड गुड्डू हमे लेकर कोर जंगल एरिया में गए ताकि हम कुछ जड़ी बूटिया और वनस्पतियाँ देख सके जो सिर्फ इतने घने जंगलो में ही मिलते है।  करीब ४५ मिनट के बाद हम वापस आये और नास्ता करने के बाद हम अपनी यात्रा पर चल पड़े।  आज हमे आलूबाड़ी कैंप जाना था।  




करीब साढ़े आठ बजे हम अपने अगले पड़ाव की तरफ बढ़ चले।  एक छोटी नदी पार कर थोड़ी देर चलने के बाद हम जड़ी बूटी  टावर के पास करीब ९ बज कर १५ मिनट पर पहुंचे।यह जगह काफी खूबसूरत था हम अपने गाइड गुड्डू को शिकायत कर रहे थे कि वह क्यों नहीं कल हमें यहां ले आया ताकि हम रात यहां गुजारते !



वॉच टावर की अवस्था काफी दयनीय और टूटी फूटी थी, किसी तरह हम कुछ लोग वॉच टावर पर चढने में कामयाब हुए, वॉच टावर से चारो तरफ का दृश्य अलौकिक दिखाई दे रहा था ! कुछ समय यहाँ बिताने के बाद हम आगे बढ़ चले।  






हम हरे भरे बांस के जंगल से गुजर रहे थे और हमारे गाइड गुड्डू बांस के छोटे छोटे कोमल हिस्सों को अपने पास जमा कर रहे थे , कारण पूछने पर उन्होंने बताया आज की रात वह इसकी सब्ज़ी बनायेगे ! रास्ते में हमे स्ट्रॉबेरी के छोटे छोटे झाड़ियाँ भी मिल रहे थे जिन पर छोटे छोटे स्ट्रॉबेरी के फल उगे थे हम उन्हें खाते हुए आगे बढ़ रहे थे !!

करीब तीन घंटे चलने के बाद हम आलुबारी वॉच टावर १२ बज कर १० मिनट पर पहुंचे।  यहाँ कुछ देर ठहर कर हमने अपने साथ लाये हुए बिस्कुट और चनाचूर खाया, यहां से एक घंटे की ट्रैकिंग के बाद हम आज अपने आज के पड़ाव आलूबारी कैंप पहुँच जायेंगे। 

आलूबारी कैंप (२३४८ मीटर) १ बज कर २३ मिनट में पहुंचे
आलुबारी में भी वन विभाग के बनाए दो लकड़ी के कॉटेज थे। सारे सामान को व्यस्थित करने के बाद हमारी टीम और गाइड पोर्टर रात के खाने के इन्तजाम में लग गए. आज के खाने का मुख्या आकर्षण बांस की सब्जी थी जो काफी स्वादिष्ट बनी थी !! हमने अपने गाइड का शुक्रिया अदा किया इस अद्भुत व्यंजन के लिए !


दिनाक ३० मई २०१५ 

आलूबारी छोड़ हम अपने आज के गंतव्य राचेला(१०५८६ फ़ीट) के तरफ चल पड़े।

आज ट्रेक काफी कठिन था हमे करीब २० किलोमीटर चलना था और चढ़ाई बहुत ज्यादा थी।  सारे रास्ते हरे भरे घने बांस के जंगल थे




हमराचेला करीब १२ बज कर ५० मिनट में पहुंचे।  राचेला हमारे ट्रेक का सबसे उच्चतम स्थान था

राचेला में भी वन विभाग के बनाये हुए कॉटेज थे जो की खराब रखा रखाव और कुछ उन तथाकथित सैलानियों के कारण टूटी फूटी अवस्था  मे थी जिन्हे तोड़ने फोड़ने में मज़ा आता है
दोपहर का खाना करीब ३ बजे खाकर हम आराम करने लगे।








कुछ देर आराम करने के बाद हम राचेला टॉप देखने गए। 
आज के थका देने वाली ट्रैकिंग और हाई अलटीटुड के कारण हमारे दो सदस्य प्रियंका और अत्ताउर हाई अलटीटुड सिकनेस के शिकार हो गए।लेकिन हमारे टीम मैनेजर नबी से गरमागरम मालिश पाने के बाद प्रियंका को थोड़ा राहत महसूस हो रहा था ! 
शाम का नास्ता ७ बजे.… 
रात्रि भोज ९३० बजे …

दिनाक ३१ मई २०१५
आज का ट्रैकिंग कल के वनिस्पत काफी आसान था हमे लगातार नीचे के तरफ जाना था लेकिन ज़िन्दगी  इतनी आसान नहीं होती हर अच्छाई के साथ कुछ न कुछ बुरा जुड़ा होता है… आज हमे और दिनों की अपेक्षा दुगना रास्ता तय करना था !



आज हमे तांगता गावं  होते हुए तोडे पहुचना था। टाँगता और तोड़े  मशहूर टूरिस्ट पॉइंट बिदु से काफी करीब है। यह गाँव तामिंग जाति के लोगो से भरी पड़ी है जो इलायची और नारंगी के खेती के लिए विख्यात है








और हमे जोंको से भरी हुयी इलाको से भी गुज़रना होगा!! हमारे गाइड ने हमे पहले ही बता दिया था कि हमे क्या करना है सो हम अपने साथ खैनी और चुना लेकर गए थे जिसका हमारे गाइड ने उपयोग कर एक घोल बनाया था जिसे लगाने से जोंक हमे नहीं काट पायेंगे! 

राचेला से हम ९ बजे निकल पड़े।
करीब ५ से ६ किलोमीटर चलने के बाद मैं  अपनी दोनों घुटनो में दर्द महसूस करने लगा जो धीरे धीरे बढती जा रही थी।  शायद बहुत दिनों के बाद मैं ट्रैकिंग आया था इस लिए या फिर मेरी उम्र बढ़ गयी इस लिए …? करीब तीन साढ़े तीन घंटे की तकलीफदेह ट्रैकिंग के बाद हम रुक्का कैंप पहुंचे।

दोपहर के खाने में हमने सत्तू और बिस्कुट खाया, क्योंकि अपने घुटने में दर्द के कारण मैं बाकी टीम सदस्यों के साथ चल नहीं सकता था नबी, ध्रुव और अत्ताउर मेरे साथ चलने के लिए रुक गए बाकी सदस्य आगे चले गए। 

हमारा अगला पड़ाव टाँगता गाँव था।  
सभी सदस्यों के चले जाने के १५ मिनट बाद हम आहिस्ता आहिस्ता उनके कदमो के निशान पर चल पड़े।  करीब दो किलोमीटर जाने के बाद हमे उनके पैरो के निशान  मिलने बंद हो गए! हमे लगा हम गलत रास्ते आ गए है , आगे का रास्ता भी एक पेड़ के मोटे तने से रोक दिया गया था। हम ज़ोर ज़ोर से अपने बाकी लोंगो का नाम लेकर चिल्लाना शुरू किया लेकिन कोई भी जवाब नहीं आया! मुझे चिंता सता रही थी  अगर में इस अवस्था में गलत रास्ता चला गया तो……?तभी हमे अपने पोर्टेरो में से एक बंदा आता दिखाई दिया !उसने हमारी अव्वाज को सुन लिया था , हमने ईश्वर को धन्यवाद दिया और उसके पीछे पीछे चल पड़े। 
यह इलाका सचमुच में जोंको का स्वर्ग है जोंक यहां झुंडों में हम पर आक्र्मण कर रहे थे लेकिन गाइड द्वारा बनाये घोल के कारण हम अपने आप को कुछ हद तक बचा पा रहे थे !(वीडियो देखे )



करीब ६ बजे हम टांगता गाँव पहुंचे , अपने घूॅटनो की खराब अवस्था और लम्बी ट्रैकिंग के बाद हमारी अवस्था तोडे गाव तक जाने की नहीं थी सो हमने टांगता में ही रात बिताने का फैसला किया। 
अपने सामान को रखने के बाद हमने रात के खाने का प्रबंध किया और हमारे मेज़बान के साथ हमने एक गीत संगीत का कार्यक्रम किया!!





रात्रि भोज ११ बजे
दिनाक १ जून २०१५

तोड़े गाव के लिए हम ९ बजे रवाना हुए।



आज का मौसम काफी खुशगवार थाहमने अपने आप को दो टीमों में बाँट लिया , एक में मैं यानी घायल नेता साथ में नबी, ध्रुव और अत्ताउर और दूसरे में बाकी सारे। हम सीधे और स्पॉट रास्ते से द्वाईखोला के तरफ बढ़ चले बाकि लोग शॉर्टकट से द्वाईखोला के तरफ बढे।  





द्वाईखोला हम करीब  साढ़े दस बजे पहुंचे।  द्वाईखोला में एक छोटी नदी है कहते है इसमे प्राकृतिक गुण है जिससे कई रोग ठीक हो जाते है इस लिए इस नदी का नाम द्वाईखोला है! हम जिस जगह पहुंचे थे उसके एक तरफ भूटान और दूसरे तरफ सिक्किम था







हमने द्वाईखोला में चाय के साथ थोड़ा आराम किया। 

करीब ४० मिनट की सपाट स्पॉट चढ़ाई के बाद हम तोड़े गाँव ११ बज कर ४० मिनट में पहुंचे। 

एक स्थानीय निवासी के यहां हमने अपने रात के ठहरने का प्रबंध किया।  

दिनाक २ जून २०१५
सुबह के नास्ते में हमने गरमागरम मोमो बस अड्डे पर जा कर खाया और अपने जीप में सवार हो कर न्यू मॉल जंक्शन के तरफ रवाना हो गए.







करीब दो घंटे की यात्रा खूबसूरत वादियों से होते हुए जलधाका और चलासा होते हुए हम न्यू मॉल जंक्शन पहुंचे और ट्रैन पकड़ अपने घर के तरफ बढ़ चले........!! 

टीम सदस्य 
टीम लीडर राजेश शॉव 
कोषाध्यछ अनुपम मल्लिक 
टीम प्रबंधक नबी तरफदार 
क्वाटर मास्टर सूर्य मखाल
अन्य सदस्य
प्रसेनजित (कैम्पबेल) 
परेश प्रमाणिक 
प्रियंका चाकी 
पियाली दत्ता 
शगुफ्ता

अत्ताउर बगानी
ध्रुव दलुई
दीपिका नाथ
आशा दास
गणेश

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