Wednesday, March 13, 2013

Palash Ke phool


पलाश के फूल
*यह लेख मनोरंजन हेतु लिखा गया है इनमे वर्णित विचार से अगर किसी को ठेस पहुँचती है तो लेखक क्षमा प्राथी  है।  
 
 
आज मैं बहुत उदास हूँ! मैं आचार्य हजारी प्रसाद दिवेदी जैसा खुशकिस्मत नहीं हूँ कि जब वो "शिरीष के फूल"नामक अपना प्रसिद्ध निबन्ध लिख रहे थे तो उनके चारो तरफ शिरीष के पेड़ थे लेकिन मुझ बदकिस्मत के चारो तरफ क्या आसपास भी कोई पलाश क्या कुकुरमुत्ता का फफूंद भी नहीं है!!
 
पलाश नाम सुन कर ही ऐसा लगता है जैसे कानो में घंटी बज रही हो और फूल का तो जवाब ही नहीं लाल लाल जैसे किसी बाला का नया नया विवाह हुआ हो!इसके फूल दिखने में ऐसे लगते है मानो बहुत सारे पत्ते एक दुसरे से गुथे हो इसे हम दुसरे शब्दों में कहे तो यह हमे एकता का पाठ पढ़ता है।
 
मैं दिवेदी जी के इस रिमार्क या टिपण्णी पर अपनी घनघोर आपति जताता हूँ कि "दिन दश फुला, फुली के खक्क्ड भया पलाश" भला उनको यह कहने का क्या हक है? अगर वो किसी की तारीफ़ नहीं कर सकते तो उसे कम से कम नीचा तो दिखाने की कोशिश न करे। भले पलाश शिरीष के भांति ज्यादा समय नहीं खिलता है लेकिन जब तक रहता है अपनी सुन्दरता से सभी के दिलो को राहत पहुंचाता है। प्रणय निवेदन के लिए इस फूल से अच्छा कोई हो ही नहीं सकता भले ही फूलो का राजा गुलाब हो लेकिन जरा सोचिये अगर आप किसी को गुलाब का एक फूल देंगे तो कैसा लगेगा?? वही आप पलाश का एक क्या आधा भी फूल दे दे तो लगेगा आपने गुलदस्ता दे दिया!!  
वकोल शायर साव कलकतिया : फूल तो फूल है गुलाब हो या अमलतास,
                                               वो भी एक फूल है नाम है जिसका पलाश।
 
मैं तो कहता हूँ कि सरकार को कमल के जगह पलाश को राष्ट्रीय फूल घोषित कर देना चाहिए। कमल तो पानी और कीचड़ में खिलता है लेकिन पलाश का क्या कहना।जब देश सूखे की मार से मर रहा है तो ये साहबजादे आराम से किसी ताल में खिलते हुए तैर रहे होंगे। कमल हमारी संस्कृति में एक शोषक वर्ग की तरह है, जो समय कैसा भी रहे वो अपने आराम का साधन किसी भी तरह शोख कर जुगाड़ ही लेता है ऐसा फूल जो शोषक वर्ग का प्रतिनिधित्व करता हो राष्ट्रीय फूल बनाने के लायक नहीं है। वही आप पलाश के फूल को देखिये भीषण गर्मी में भी लहलहाता रहता है। पलाश हमारे किसान वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है जैसे किसान भीषण गर्मी में भी अपने खेतो में काम करने के बावजूद हँसता खिलखिलाता देश का पेट भरने का बीडा उठाये रहता है उसी तरह पलाश भीषण गर्मी में भी लू के थपेडो को सहता हुआ  खडा रहता है।
 
पलाश इस मायने में भी शिरीष से महान है की इसके फल नहीं होते है और उसे देख कर कम से कम दिवेदी जी को हमारे  भ्रष्ट नेताओं की याद नहीं आएगी। और दुसरे जिस तरह दिवेदी जी को शिरीष का पेड देख कर कबीर , कविवर निराला और गाँधी जी याद आते है उसी प्रकार मुझे भी पलाश को देखकर उन हसीनाओ की याद आती है जिन्होंने देश का नाम अन्तराष्ट्रीय क्षेत्र में ऊँचा किया है सुस्मित सेन , एश्वर्य राय , युक्तामुखी , लारा दत्ता भला शिरीष के पेड देख कर उन बुड्ढे लोगो को याद कर हम युवाओं को अपने सपनों को खराब करने की क्या ज़रुरत है?
 
शिरीष का फूल बुद्धे और शोषक वर्ग का प्रतीक है और पलाश वो तो चार दिन की ज़िन्दगी में ही सभी को हंसते हुए बिताने का अमर सन्देश देता है यह जानते हुए क़ि वह दश दिन के लिए ही  खिला है।
 
मुझे पलाश को देखकर हुँक सी उठती है हाय वो मेरी प्यारी बेवफा सनम पलाश प्रिया कहाँ गयी!! 


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By राजेश साव        

 

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