क्या है मेरा
मेरा दिल हर वक़्त, मेरा मेरा करता रहता है,
मेरा मकान, मेरी दूकान, मेरा पैसा,
मेरी पत्नी, मेरा बेटा, मेरा संसार
कही एकांत में इसे समझाता हूँ,
क्या मेरा मेरा करता है, क्या है तेरा?
औरो की छोड़ यह शरीर भी तो नहीं है तेरा,
पंच तत्वों के गारे से बना, सांसो को उधार लिया,
सांस रुक जाएगी जीवन नैया थम जाएगी,
सगे सम्बन्धी कुछ पल शोक मनायेगे,
फिर अपने धंधे लग जायेंगे,
तेरा कोई अस्तित्व था शायद भूल जायेंगे।
लेकिन दिल है कि मानता ही नहीं,
सोचता हूँ इसे जीवन के सत्य की,
एक झलक दिखा ही दू,
यही परम सत्य है बता ही दू।
अंतिम विश्राम स्थल में ले जाता हूँ,
सच्चाई के दर्शन करवाता हूँ।
देख वो सामने दो गज की जगह,
लकडियो की चिता पर,
सिर्फ दो गज के कफ़न में लिपटा,
चीर निंद्रा में एकदम शांत सोया।
उधर भी देख,
जो सगे सम्बन्धी जरा सी तकलीफ में,
आसमान सर पर उठा लेते थे,
व्याकुल बेचैन हो जाते थे, उसे अपनो पर गर्व था,
जिस बेटे को पढाया लिखाया लायक बनाया,
वोही, हाँ देख वोही उसकी चिता को आग लगा रहा है,
कपाल क्रिया पर अपना फ़र्ज़ निभा रहा है।
कुछ इधर उधर बैठे बतिया रहे है,
एक दूजे से अपना उनका हालचाल जान रहे है।
केवल साढे तीन घंटे का खेल है,
पंच तत्व की उधारी चुकेगी,
मिटटी मिटटी में मिल जाएगी,
उस मिटटी को भी समेट
गंगा में बहा देंगे,
कुछ घंटो पहले उसका कोई अस्तित्व था,
जो सिकुड़ कर सिमट कर एक शुन्य हो
शुन्य में विलीन हो जायेगा,
क्या रहा अंत में कुछ भी नहीं
दिल सहम गया, सत्य का दर्शन कर दहल गया।
जल्द से जल्द ले चल यहाँ से,
सच ही कहा है किसी ने, कफ़न में जेब नहीं होती
क्या ले के आया और क्या लेके जायेगा,
मुट्ठी बांधे आया है, हाथ खोलकर जायेगा
यही से लिया यही पर दिया
फिर क्या है मेरा ?
अपनी प्रतिक्रिया अवश्य वयक्त करे
अशोक सारस्वत
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