मेरी एक मित्र है नाम है इंदु,
वोह मेरी दोस्ती मैं है जैसे चन्द्रबिन्दु।
मुझे उससे पहली मुलाकात भी है अच्छी तरह याद,
जेठ की थी चिलचिलाती धुप दिन था इतवार ,
और तारीख था तेइस अप्रेल सन दो हज़ार।
उसकी हर बाते मुझे लगाती है प्यारी , क्योंकि वोह है सबसे न्यारी।
मेरी बातो को समझाने वाली, सीधी सादी भोली भली थोड़ी सुकुमारी।
चाल पर उसकी मैं सड़के जाता हूँ , जब वोह चलती है मैं ठहर जाता हूँ।
सूना था मोरनी की चाल बहुत प्यारी होती है,
अब मैं मानता हूँ वोह ज़रूर इंदु जैसी चलती है।
आवाज़ में है उसके एक मिठास , लगता है जैसे गन्ने का खेत हो आस पास।
मुझे कुछ नया करने की वो प्रेरणा देती है, मेरी हर काम की वो सुध लेती है।
मुझे उसकी दोस्ती पर है नाज़, न था उसपर ग्रहण न है उसपर दाग।
वोह मेरी दोस्ती में है पूनम का चाँद , वोह मेरी दोस्ती में है पूनम का चाँद।
राजेश साव
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