यादगार यात्रा
थ्री मस्केटियर |
बात सन २०११ दुर्गापूजा की है मैं कुछ व्यक्तिगत कारणों से काफी दुखी और अकेला महसूस कर रहा था। अक्सर मैं दुर्गापूजा के दौरान कोलकाता से बाहर घुमने चला जाता हूँ क्योंकि भीड़ मुझे बिलकुल पसंद नहीं है। दुर्गा सप्तमी के दिन मैंने अपने मित्र नवी को फ़ोन किया और पूछा "कही घुमने चलते है", कहाँ? कहीं भी पहले निकलते है फिर रास्ते में सोचेंगे कहाँ जाना है।
बिना प्लान बनाए घुमने का एक अलग ही मज़ा है इसमे रोमांच बना रहता है। मैंने अपना दुपहिया निकला और नबी को लेने उसके घर जा पहुंचा। नबी हमारे एक और मित्र शेख राजू के साथ मेरा इंतज़ार कर रहा था मैंने पूछा " एक ही बाइक में तीन जन कैसे जायेंगे?
"कोई बात नहीं पूजा है कोई कुछ नहीं कहेगा और हम दोनों एक हड्डी के है एडजस्ट हो जायेंगे! तीनो जन एक ही बाइक पर बैठ राष्ट्रीय राजमार्ग २ पहुच गए।
"जाना कहाँ है?"
"बाँकुड़ा चलते है,"
नहीं तारापीठ और बक्रेश्वर चलते है गर्म कुण्ड में नहायेंगे।
तय हुआ बक्रेश्वर जाना है। मक्खन के तरह चिकने राष्ट्रीय राजमार्ग २ पर मेरी बाइक ९५ कि० मी० प्रति घंटा की गति से दौड़ रही थी करीब घंटे भर में हम शक्तिगड पहुच गए वहाँ का मशहूर "लेंग्चा" खाने के बाद हम पानागेढ़ की तरफ बढ चले।
किसी ने ठीक ही कहा है जब आप बाइक पर हो और वो हवा से बात कर रही हो और आपके बाल हवा में उड रहे हो, उस अहसास से बढ कर दुनिया में कुछ भी नहीं है! मैं उस बात को आज सचमुच में महसूस कर रहा था। हम पानागढ़ पहुँचने वाले ही थे कि अचानक से बूंदा बांदी होने लगी। बारिश में भीगते हुए बाइक चलाने का आनंद वही जान सकता है जिसने ऐसा किया है। मैंने अपनी बाइक की गति ९५ कि० मी० प्रति घंटा से घटा कर ५५कि० मी० प्रति घंटा कर दिया पानागढ़ पहुच हमने दोपहर का खाना खाया और दार्जिलिंग मोड से दाहिने तरफ मुड़ने के बाद हम इलामबाज़ार की तरफ बढ़ चले।
यहाँ से रास्ता काफी खराब था रास्ते में बड़े बड़े गड्ढे भरे पड़े थे मैं सावधानी पूर्वक गाडी चलाते हुए आगे बढ रहा था। इलामबाज़ार पार करने के बाद हमने रास्ते में एक ढाबे के पास अपना डेरा डाला ताकि हम कुछ देर विश्राम कर ले क्योंकि चार घंटे बाइक पर बैठने के बाद हमारी हालत पतली हो चुकी थी और मुश्किल यह था की बाइक चलाना केवल मैं जानता था सो मेरे मित्र चाह कर भी मेर मदद नहीं कर सकते थे। खैर चाय पीकर तरोताज़ा होनेके बाद हम फिर अपनी मंजिल की तरफ बढ़ चले हमारा अगला पडाव दुबराज़पुर था।शाम के सात बजे के लगभग हम दुबराज़पुर पहुँचे।
दुबराज़पुर में काफी चहल पहल थी क्योंकि वहाँ दुर्गापूजा मेला लगा था हम भी उस मेले में शामिल हो गए और करीब घंटा भर मेले में बिताने के बाद हम बक्रेशवर के तरफ चल पड़े जो वहाँ से करीब १५ किलोमीटर था। करीब ४५ मिनट के सुनसान रास्ते के सफ़र के बाद हम बक्रेशवर पहुच गए। हमने जल्द ही एक होटल में कमरा लिया और फ़ौरन नहाने के लिए बाथरूम में चले गए। नहा कर तरोताजा होने के बाद हम बक्रेशवर मदिर दर्शन के लिए गए। चूकि सारे दिन के सफ़र के बाद हम काफी थके हुए महसूस कर रहे थे इसीलिए हमने बाकी घुमने का प्लान अगले दिन के लिए स्थगित कर दिया और अपने कमरे में जा कर सो गए।
अगले दिन हम सुबह थोड़े देर से उठे नास्ता करने के बाद हम गर्म कुण्ड में नहाने चल दिए।यहाँ वेस्ट बंगाल टूरिस्म डेवलपमेंट कारपोरेशन ने नहाने के लिए ताल बनाया है जहा कुण्ड का पानी आता है प्रति व्यक्ति टिकट ५ रुपये लेकिन उस दिन यह ताल मरम्मत के कारण बंद था सो हम मुख्य ताल में नहाने पहुँच गए। ताल का पानी काफी गर्म था। शरीर को अहिस्ता अहिस्ता पानी में ड़ाल कर पहले उसे गर्म का अभ्यस्त कराने के बाद हमने जम कर नहाने का आनंद उठाया। बक्रेशवर में कुल दस ऐसे गर्म कुण्ड है जिनका तापमान ६६ डिग्री सेल्सियस से लेकर ९० डिग्री सेल्सियस तक है।
बक्रेशवर एक शक्तिपीठ है इसलिए इस स्थान का काफी महत्त्व है। दोपहर का खाना खाने के बाद हमारे पास करने के लिए कुछ भी नहीं था। अब क्या? शान्तिनिकेतन चले? हमने एक दुसरे के तरफ देखा और फ़ौरन अपना सामान उठा निकल पडे।
बक्रेशवर से शान्तिनिकेतन करीब १४९ किलोमीटर है वापस दुबराजपुर पहुच हमने शान्तिनिकेतन का रास्ता पकडा करीब चार घंटे के यात्रा के बाद हम शान्तिनिकेतन पहुंचे, लेकिन वहाँ पहुचने के बाद पता चला दुर्गापूजा के कारण विश्वभारती बंद है सो हमारा चार घंटे का सफ़र बिना कविगुरु के दर्शन का बेकार गया। कुछ पल "आम्रकुंज" में बिताने के बाद हम कोलकता के तरफ बढ़ चले और शाम होते होते हम अपने प्यारे शहर कोलकाता में थे।
कई मायनों में यह सफ़र मेरे लिए यादगार था पहला तो यह कि एक ही बाइक में हम तीन जन सवार थे और करीब ६००किलोमीटर हमने दो दिनों में तय किया था। बारिश में भीगते हुए बाइक चलाना भी एक अद्भुत अनुभव है।बिना प्लान बनाए अनजाने रास्तो पर निकल जाने का रोमांच किसी नशे से कम नहीं है मैं हमेशा से ही इन रोमंचो का दीवाना रहा हूँ।
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By Rajesh Shaw
good travel...........................like me
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