"स्वागत छंदा"
दुर्गा साह प्रहलाद छंदा मैं(राजेश) और नबी |
नेताजी अन्तराष्ट्रीय विमानबंदर पर एक कोहराम सा मचा था लोग एक दुसरे के साथ धक्का मुक्की कर रहे थे।एक यात्री जो अभी अभी विमानबंदर से बाहर निकला था इतनी भीड़ देख वो कोतुहलवश पूछा बैठा : "कौन आ रहा है?"
"एवेरेस्ट के विजेता!" मैंने जवाब दिया।
शाम ५.१० पर उनका विमान आने वाला था लेकिन खराब मौसम के कारण वो करीब ४५ मिनट देर से आया।
४ बी दरवाजे से सबसे पहले व्हीलचेयर पर बसंत सिंह रॉय निकले और उनके पीछे इंस्पेक्टर उज्जल रॉय फिर तुसी और फिर छंदा और मोनिदिपा दत्ता। सभी प्रेस रिपोटर उनके तरफ लपके और एक तस्वीर और उनसे बात करने के लिए आपस में धक्का मुक्की करने लगे।
ड्यूटी पर तैनात अफसरों के पसीने छुट रहे थे भीड़ को काबू में करने के लिए। परिवहन मंत्री मदन मित्र भी सभी एवेरेस्ट विजेताओ का स्वागत करने पहुचे थे।
हमारे माउंटेनियरिंग इंस्टिट्यूट से दुर्गा साहा , अंजन मित्र, सीमाश्री , नबी, एजाज़ , सुजीत, अब्बास प्रहलाद, रवि, अनुपम और मैं फूलो के गुलदस्ते के साथ इन बहादुरों का स्वागत करने पहुचे हुए थे।
विमानबंदर पर हमें और अपनी माँ को देख छंदा के आखो से आंसू निकल पडे। आज से दो महीने पहले जब छंदा अपने एवेरेस्ट अभियान के लिए निकली थी तो किसी को भी ये अंदाजा नहीं था और शायद छंदा भी नहीं जानती थी कि वो एक इतिहास रचने जा रही है एवेरेस्ट और लोह्त्से को एक साथ जय करने का इतिहास जो आज तक किसी भारतीय ने नहीं किया!
मुझे अपने पर गर्व या कहु मैं अपने आप को खुशकिस्मत मानता हूँ की छंदा का मैं प्रशिक्षक था जब वो शैलारोहन सिखाने पहली बार आई थी।
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