"इश्क"
आज की ही बात है मेरे एक दिलअज़ीज़ दोस्त ने कहा
"कौन नहीं चाहता इश्क के समुन्दर में कूदना ,
लेकिन मुझे तैरना नहीं आता और में डूबने से डरता हूँ"
लेकिन मैंने कहा, मुझे तैरना आता है और मैं डूबने से भी नहीं डरता हूँ,
लेकिन इश्क करने से डरता हूँ!
यह एक अजीब सी उलझन है जिसे तैरना नहीं आता वह डूबने से डरता है
जिसे तैरना आता है वह इश्क करने से डरता है!
आखिर यह इश्क क्या है? कोई मर्ज़ है या कोई दवा है??
मैंने पास से गुज़रते हुए एक सड़क छाप मजनू से पूछा,
भई बता सकते हो इश्क क्या है? तो उसने पलटते हुए जवाब दिया,
यह उस बस के समान है जिसे वक़्त पर न पकड़ो तो छुट जाती है,
जिसे ठीक से हैंडल न करो तो रूठ जाती है,
वेल मेनटेन्द रखो तो लम्बी माईलेज देती है, तुम्हारे हर सफ़र को स्माइल से भर देती है।
उसका जवाब सुन मैं परेशान हो गया , उसके लॉजिक से मैं हैरान हो गया!
तभी सामने से एक डाक्टर आता दिखाई दिया।
मैंने यही प्रश्न उसको दागा , पहले तो उसने मुझे अच्छी तरह नापा।
फिर अपने चश्मे को ठीक करते हुए कहा
"भई इश्क एक लाइलाज रोग के सामान है, जो वक़्त के साथ बढ़ता है
तुम्हे अपने शिकंजे में इस तरह जकड़ता है, जैसे कैंसर जान लेकर ही छोड़ता है।
कभी यह रोग तुम न लगाना, अगर लग जाये तो फ़ौरन इलाज कराना
यह लो मेरा नंबर , मैं इसमे एक्सपर्ट हूँ, शादीशुदा हूँ अपनी पत्नी से त्रस्त हूँ।
मुझे हैरान छोड़ वो जा चूका था।
मैं इसी उधेड़बुन में डूबा था कि सामने से एक भिखारी आता दिखाई दिया।
अपने हाल से वो था बेहाल, मैंने भी दाग डाला अपना वही पुराना सवाल।
इश्क उस देने वाले दाता के सामान है जब देता है तो जी खोल कर देता है,
तुम्हारी फाँकेदार ज़िन्दगी को वो मालामाल कर देता है
जेब में रोकडा हो तो दुनिया हसीं कर देता है, हो जेब खाली तो ज़िन्दगी जलील कर देता है।
कभी किसी से इश्क मत करना वर्ना ……
मेरी तरह इस सड़क पे पाए जाओगे , आज मुझे दे रहो हो कल मुझसे ही लेने आओगे।
मैं वही बैठ गहन चिंतन करने लगा , अपने ही सवाल का मैं मंथन करने लगा।
तभी एक आवाज़ ने मुझे पुकारा ,
मुझे वापस इसी दुनिया में ले आया , देखा सामने एक लेखक था,
अपनी पुरानी परम्पराओं और समाज का सच्चा सेवक था।
मेरा सवाल सुन वह अति प्रसन्न हुआ, अपनी नयी कविता से वह उन्मुख हुआ,
जिसका निचोड़ सिर्फ इतना निकलता था,
इश्क , प्यार, मोहब्बत वो सामान है, जिसके बिना यह दुनिया वीरान है,
इश्क इंसान को इंसान बनाता है, तुम्हे इश्वर से साक्षात कराता है,
अगर तुममे है ज़रा भी सच्चाई और इश्क तुमने इमानदारी से निभाई,
तो तुम नया इतिहास गढ़ सकते हो अपना नाम खुदा के सच्चे बन्दे में रख सकते हो।
इंसानियत तुम पर हमेश नाज़ करेगा, कोई था राजेश कह कर याद करेगा।
मैं हैरान और बेजुबान हो गया , सभी के नज़रिए से परेशान हो गया
जानते है ये सभी इश्क एक रोग है , अगर यह लग जाए तो एक दोष है,
फिर भी सभी यह रोग लगाते है, अपने जिस्म और रूह को तड़पाते है,
रातों की नींद उड़ाते है , दिन का चैन गँवाते है।
अपने इस जाल में फसते है, दुसरे को फ़सने से बचाते है।
मैं जान गया यह पूछना बेकार है , क्योंकि
हर आशिक बीमार है, हर आशिक बीमार है
अपनी प्रतिक्रिया अवश्य वयक्त करे
राजेश साव
राजेश साव
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